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“दूसरी बार मैं उजड़े भवन को देखने गयी, मुझे वहाँ ले ज़ाया गया, और मुझे विभ्रांति दिखायी गयी जो चर्च में होती है। ये कैसे अपराध है, जिसे समझा नहीं जा सकता। यह जानकर मैं भयभीत थी, और लगभग डर रही थी कि ईश्वर विश्व को नष्ट करने वाले हैं, मैं सिर से पैर तक काँपने लगी।"