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प्रतिलिपि
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उच्च क्षेत्र में एक सीट ईमानदार-परिश्रम, मास्टर की कृपा और भगवान की ##दया से सुरक्षित है, 19 का भाग 2

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मेरा घर यहाँ पृथ्वी पर नहीं है, बल्कि मेरा घर स्वर्ग में है, जहाँ इसे कभी नष्ट नहीं किया जा सकता; आपको कभी भी किसी भी तरह से समाप्त नहीं किया जाएगा, परेशान नहीं किया जाएगा, छेड़छाड़ नहीं की जाएगी या आप पर अत्याचार नहीं किया जाएगा। आप वैसे ही जियेंगे जैसे आप स्वयं हैं, उस स्वप्न के रूप में जिसके बारे में मैंने अपनी छोटी उम्र में उस कविता में लिखा था।

मैं बूढ़ा महसूस नहीं करती। मैं ईमानदारी से कहती हूं, मैं खुद को बूढ़ा महसूस नहीं करती। कभी-कभी मेरा शरीर शिकायत करता है क्योंकि मैं उसका अत्यधिक उपयोग करती हूँ। मैं कभी-कभी दिन-रात काम करती हूं। मुझे खाने-पीने, सोने की कोई परवाह नहीं है, जब तक कि मैं सचमुच और सहन न कर सकूं और कहीं फर्श पर या सोफे पर "मर न जाऊं"। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। मैं काम करती हूं क्योंकि मुझे पता है कि अगर आप खुश हैं, तो मैं भी खुश रहूंगी। यदि आपको दर्द होगा तो मुझे भी दर्द होगा। मैं अपने लिए काम करती हूँ, लेकिन आपके नाम पर, भगवान के नाम पर। लेकिन सच में, यह मेरे लिए है, क्योंकि हर दिन जो दर्द मैं देखती हूं, वह असहनीय है, यहां तक ​​कि टेलीविजन या मेरे छोटे से फोन की स्क्रीन पर आने वाली खबरों से भी। यह मेरे लिए अभी भी वास्तविक है, और दर्द कच्चा है और तब तक नहीं रुकेगा जब तक यह दुनिया स्वर्ग नहीं बन जाती। मेरा मतलब है, शायद असली स्वर्ग से भी कम, लेकिन क्यों नहीं?

मैंने भगवान से पूछा, “यदि वे यहीं रहना चाहते हैं तो क्यों नहीं? यदि वे अपने स्वप्न में, स्वप्न अवस्था में, भ्रम में ही रहना चाहते हैं, तो क्यों नहीं? उन्हें रहने दो। लेकिन कम से कम यह अच्छा और आरामदायक होना चाहिए, बिल्कुल स्वर्गीय दुनिया की तरह।” मैं इस दुनिया को आपके लिए स्वर्ग बनाना चाहती हूँ। जो लोग वास्तविक स्वर्ग में नहीं जाना चाहते, वे भी स्वर्गीय जीवन, शांतिपूर्ण जीवन, अद्भुत जीवन का आनंद ले सकते हैं, ठीक वैसे ही जैसा मैंने अपनी कविता में सपना देखा था जब मैं बहुत हताश थी। मुझे याद है, उस कविता का नाम था "ज़ोर से चीखना।" इस दुनिया को ऐसी दुःखद स्थिति में देखकर, हताश होकर, मैंने वह कविता लिखी थी। और मैं उस सपने को साकार करना चाहती हूं। इस प्रकार, मैं इन सभी दशकों से लड़ रही हूँ, आपके साथ और आपके बिना भी। मैं बस आशा करती हूं कि एक दिन- बहुत, बहुत जल्द - आप मेरी मदद करेंगे, मेरे साथ मेरी तरफ से लड़ेंगे, ताकि आपका वह सपना साकार हो - पृथ्वी पर एक स्वर्ग, जहां आपके पास अभी भी सब कुछ हो सकता है, लेकिन स्वस्थ चीजें,स्वस्थ चीजें, संतों जैसी चीजें, क्योंकि आप संत जैसे प्राणी होंगे जो इस ग्रह पर ऐसे रहेंगे जैसे स्वर्ग में रहते हैं।

मैंने सबकुछ त्याग दिया है, अपना सारा भौतिक जादू। उदाहरण के लिए, जैसे आप हवा में उड़ सकते हैं, हवाई यात्रा- हवाई जहाज से नहीं, अपितु हवा में खुद से; अदृश्य होकर खतरे से बच सकते हैं; और मुसीबत के समय अपने शरीर को विघटित कर दें और उन्हें पुनः कहीं और जोड़ दें ताकि आप अस्थायी रूप से बच सकें। आप दीवारों के पार होकर, दरवाजों के पार जा सकते हैं; जब आप आज़ाद होना चाहें तो जेल या किसी भी चीज़ का बंद दरवाज़ा खोल दें। ये मेरे जीवन को अधिक सुविधाजनक, अधिक आरामदायक बना सकते हैं। लेकिन मुझे यह सब त्यागना पड़ा, क्योंकि मैं दुनिया में हस्तक्षेप करती हूं, और आपको किसी भी जादुई शक्ति का खुले तौर पर उपयोग करने की अनुमति नहीं है। लेकिन कभी-कभी मुझे इसका उपयोग करना पड़ा... कुछ छोटी सी चीज, मेरे कुत्ते-जन को ठीक करने के लिए। लेकिन फिर, मुझे भारी कीमत चुकानी पड़ी! और यदि आप हर चीज के लिए भुगतान करना चाहें तो भी आप ऐसा नहीं कर सकते; आपको इसकी अनुमति नहीं है। अन्यथा, आपसे आपकी उपाधि छीन ली जाएगी, मिशन से बाहर निकाल दिया जाएगा, और ईश्वर संभवतः कभी भी आपका उपयोग नहीं करना चाहेंगे, या आपको दोबारा अस्तित्व में नहीं आने देंगे, मास्टर होने की तो बात ही छोड़िए।

दीक्षा के समय, हमने आपको बताया है कि कैसे पता करें कि आप पाँच स्तरों में से किस स्तर पर हैं - आप अपनी दृष्टि के अंदर किस प्रकार का परिदृश्य, दृश्य देखेंगे। और आगे ऊपर: नया क्षेत्र। बाहरी चीजें नहीं, नहीं, नहीं। जो आप देख रहे हैं, कोई नहीं देख सकता। और आप अपने आध्यात्मिक विकास के किस समय या किस चरण पर ईश्वर की ओर से किस प्रकार की (आंतरिक स्वर्गीय) धुन, संगीत या शिक्षा सुनेंगे। आप यह सब जानते हैं, इसलिए अपने आप को “गुरु जी” या “महान मास्टर” या यहां तक ​​कि “बुद्ध” होने का दावा करने की कोशिश न करें… आप कैसे हो सकते हैं? आप जानते हैं। आपको मालूम है कि आपके पास कुछ भी नहीं है। आपको आंतरिक जगत के बारे में कुछ भी पता नहीं है और आप बहुत निम्न स्तर के हो।

मैं जानती हूं कि आपमें से कुछ लोग दूसरों की मदद करना चाहते होंगे, इसलिए इसके लिए हमें सही काम करना होगा। अगर कोई भूखा और प्यासा है, तो आप उन्हें मिट्टी नहीं दे सकते; आपको उन्हें उचित भोजन और पीने के लिए तरल पदार्थ देना चाहिए। और दवा, यदि आप दे सकें। यदि आप वह नहीं दे सकते जो आवश्यक है और आपकी अज्ञानता से नुकसान भी हो सकता है, तो यह दोनों के लिए आपदा है!

क्योंकि यदि आप थोड़े ऊंचे स्तर पर हैं, यहां तक ​​कि तीसरे स्तर पर भी, तो आप कभी भी अपने आप को कुछ भी होने का दावा नहीं करेंगे। क्योंकि आप अभी भी कहीं नहीं हैं। भले ही आप मास्टर को अपने घर में आते हुए देखें, मास्टर का प्रकटीकरण, उनका प्रकाश शरीर आता है, तब भी आप कहीं नहीं पहुंचते। आप अभी आधे रास्ते पर भी नहीं पहुंचे हैं, इस बात की तो बात ही छोड़िए कि आप पांचवें स्तर से ऊपर गए हैं या नहीं, या दूसरों को बचाने की शक्ति में निपुणता प्राप्त करने के लिए पांचवें स्तर पर भी हैं। और तब भी आपको कष्ट भोगना पड़ेगा ही, क्योंकि चाहे आप अपने दीक्षा देने वाले मास्टर से कितनी भी शक्ति प्राप्त कर लें, फिर भी आपके पास पर्याप्त नहीं होगी। इस दुनिया के लिए नहीं, नहीं, नहीं। यही कारण है कि कई मास्टर बहुत कम संख्या में शिष्यों को दीक्षा देते हैं। उनमें से कई लोग ऐसा नहीं चाहते। क्योंकि यदि आप अपने लिए अच्छा अभ्यास करना चाहते हैं, आप दूसरों के कर्म में हस्तक्षेप करने की कोशिश नहीं करो; क्योंकि तब दोनों डूब जाएंगे, एक छोटी नाव की तरह जिस पर अधिक भार नहीं डाला जा सकता। क्योंकि ईश्वर मास्टर को सारी शक्ति देते हैं, लेकिन मास्टर प्रत्येक शिष्य के साथ केवल कुछ ही शक्ति साँझा कर सकते हैं।

जब मैंने सुना कि कुछ दीक्षार्थियों ने दावा किया है कि वे मैत्रेय बुद्ध हैं, तो मैंने भगवान से कहा, "ओह, कृपया, क्या आप उनमें से किसी को यह दे सकते हैं?" मैं उस समय चारों ओर से कर्मों के कारण थोड़ा थक चुकी थी! भगवान हंसे और मुझसे कहा, "नहीं, वह तुरंत मर जाएगा!” वह आपको सारी शक्ति नहीं दे सकता: नंबर एक, आप मर जायेंगे; आप इसे सहन नहीं कर सकते। दूसरा, मास्टर को कई शिष्यों के साथ साँझा करना होता है और कुछ अपने लिए बचाना होता है।

और मैंने आपको बताया कि इस समय कोई भी- मेरा या अन्य लोगों का कोई भी शिष्य- पूर्ण ज्ञानोदय की उस अवस्था तक नहीं पहुंच पाया है, जिससे कि वह ईश्वर से प्राप्त समस्त शक्ति को प्राप्त कर सके, और ईश्वर उन्हें शक्ति प्रदान करेंगे कि वह बाहर जाकर अन्य लोगों को स्वतंत्र रूप से दीक्षा दे सके। नहीं! तो कृपया अपने आप को जोकर मत बनाइए। हे प्रभु। यह बहुत सस्ता थिएटर है। यह बहुत ही घटिया प्रतिलिपि है। और आप स्वयं भी इसे बहुत अच्छी तरह जानते हैं, क्योंकि आप कुछ भी नहीं जानते। आप बहुत नीच हैं; अन्यथा आप ऐसा दावा नहीं करते। क्योंकि आप जानते होंगे कि परमेश्वर के उपहार को झूठा साबित करना एक जघन्य पाप है, जिसके परिणामस्वरूप अथक नरक की सजा मिलती है! आप बस अपने अहंकार से बात कर रहे हैं, और राक्षस आपको धोखा दे रहे हैं, आपको फुला रहे हैं ताकि आप उनका साधन बन जाएं। और जब इस दुनिया में आपका अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, या जब वे आपको नहीं चाहेंगे, तो वे आपको नीचे खींच लेंगे।

अपने सामने अन्य तथाकथित “मास्टरों” को देखिये। जैसे, उदाहरण के लिए, “जीवित बुद्ध बालक,” और रूमा, जो भी हो। यह रुमा नहीं, बल्कि बर्बादी है। इतना सस्ता, इतना हास्यास्पद। यहाँ तक कि मैं स्वयं भी इसे सहन नहीं कर सकती; यह बहुत घिनौना है। इस ट्रान टाम या रूमा ने उत्तराधिकार का दावा करने के लिए जानबूझकर मेरी पुरानी कविता की गलत व्याख्या की। और उस व्यक्ति ने (मैं अभी उसका नाम नहीं बताना चाहती) कुछ नए शब्द जोड़े, मैत्रेय का दर्जा पाने के लिए सूत्र में परिवर्तन किया, फिर स्वयं को महान मास्टर बताया। उन्होंने मेरी शिक्षा चुरा ली और ऐसे भरोसेमंद कमजोर लोगों को आधी-अधूरी दीक्षा दे दी, जिनके पास वास्तविक आशीर्वाद और दर्शन नहीं थे, जैसा कि उन्हें दीक्षा से मिलना चाहिए।

समस्त पारदर्शी ब्रह्मांडों के बुद्धों की दृष्टि में वे ऐसा करने और ऐसा दावा करने का साहस कैसे कर सकते हैं; स्वर्ग विरोधी नरकवासी होने के लिए उन्हें स्वयं राक्षस होना चाहिए। जब मैंने "होआ न्घिएम" सूत्र या अवतंसक सूत्र को दोबारा पढ़ा तो उसमें ऐसी कोई बात नहीं थी।

Photo Caption: सूरज की रोशनी के लिए भगवान का शुक्रिया

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