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लेकिन मुझे भी इस तरह एक एक कदम करके जाना होता था। एकबार हम इस दुनिया में पैदा होते हैं, इस शरीर में हमें समय लेना होता है। न्यथा, कोशिकाएँ विघटित हो जाएँगी या वे फट जाएँगी। आप जीवित नहीं रह सकते। यह शरीर सहन नहीं कर सकता। इसलिए इसमें लम्बा समय लगता है। मुझे दशक लगे, कुछ दस वर्ष इस जगह और उस जगह पहुँचने में, फिर मूल ब्रहमाँड, और फिर ईश्वर के मूल घर में जाना, मूल घर।