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“जितना बड़ा है अबाध ब्रह्मांड, उतनी ही बड़ी वह छोटी, छिपी हुई आत्मा है! आकाश और पृथ्वी इसमें हैं! आग और हवा, और सूरज और चाँद और तारे; अंधेरा और प्रकाश, इसमें सम्मिलित हैं! जो भी आदमी को बनाता है, उसका वर्तमान, और उसका अतीत, और उसका जो होगा; -सभी विचार और बातें इसके अनन्त विशाल में निहित हैं!"